शिष्ट, क्षमाशील और कर्मठ इन्हीं तीनों शब्दों के संक्षिप्त रूप से शिक्षक शब्द की उत्पत्ति हुई है। सही मायने में जिनके पास ये तीनों अमूल्य गुण हैं वही सच्चे अर्थ में शिक्षक हैं। गुरु, आचार्य, अध्यापक, टीचर, ज्ञानदाता, मार्ग दर्शक, पथ प्रदर्शक, तम विनाशक, अंधकार हरता, प्रकाश दाता, भविष्य निर्माता इत्यादि इनके ही पर्याय हैं। शिक्षकों में उपरोक्त तीनों गुण कूट-कूट कर भरे रहते हैं। इन्हीं तीनों शब्दों की व्याख्या के द्वारा शिक्षक शब्द की सार्थकता को प्रकट करने की एक छोटी सी कोशिश की जा रही है।
शिष्ट अर्थात विनम्र, मृदुभाषी, अनुशासित, चरित्रवान, फल लदे पेड़ के समान झुकने वाला, मुख से हमेशा संतुलित शब्द निकालने वाला, बिना वजह किसी भी बातों में दखल न देने वाला इत्यादि होता है। यह शिक्षकों का सबसे पहला गुण है। हर शिक्षक को इस गुण का पालन करने से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हमेशा अपने अंदर शिष्टता को बनाए रखना ही इनका कर्तव्य होना चाहिए। विनम्रता पूर्वक मीठी वाणी के साथ अनुशासन के नियमों के अंदर रहकर ही अपने अतुलनीय कार्य को पूरा करना चाहिए। जब हम शिष्ट होंगे तभी हमारे स्वयं के बच्चे और विद्यालय तथा पास-पडोष के बच्चे भी शिष्ट होंगे जिससे सारा समाज शिष्टाचार की भावना से ओत-प्रोत हो जाएगा।
क्षमाशील का अर्थ है अपने अंदर क्षमा करने की भावना रखना अर्थात सामने चाहे स्वयं के बच्चे हो या विद्यालय के बच्चे या पास पड़ोस के बच्चे या बड़े, यदि किसी से कोई गलती हो जाए तो तुरंत क्षमा कर देना चाहिए। क्रोध से तन और मन दोनों की हानि होती है। लेकिन यदि ऐसी गलती हो जो अक्षम्य हो तो भी उसके लिए सजा न देकर गलती करने वालों को प्यार से समझा कर उन्हें गलती नहीं करने के लिए प्रेरित करना चाहिए तभी गलती करने वाले अपने आप में अवश्य सुधार करते हैं क्योंकि ऐसा मनोविज्ञान के पुस्तकों में लिखा हुआ है। हमारे देश के इतिहास में क्षमाशीलता के अनेेेेकों उदाहरण भरे पड़े हैं। लंका जाने और माता सीता को मुक्त कराने में समुद्र की विनती करने पर भी जब समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तब राम पूरे समुद्र को पाताल लोक भेजने को क्रोधित हो गए लेकिन तभी समुद्र के प्रकट होकर क्षमा माँगने पर उन्हें क्षमा मिल गया। दूसरी घटना पृथ्वीराज चौहान की है जिन्होंने अपने हार की चिंता किए बिना लगातार सोलह बार मोहम्मद गौरी को पराजित किया और क्षमा याचना करने पर उन्हें क्षमा कर दिया जिसका परिणाम कुछ और ही निकला लेकिन इतिहास में पृथ्वीराज चौहान क्षमा दाता के रूप में अमर हो गए। ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो क्षमा शीलता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसलिए शिक्षकों को भी क्षमाशीलता के पथ पर हमेशा चलते रहना चाहिए।
कर्मठ अर्थात मेहनती, परिश्रमी, सतत् कार्यशील, कर्म पथ पर अग्रसर रहने वाला, स्वयं और दूसरों के हितों के लिए कार्य करने वाला, बच्चों का हमेशा ज्ञान बढ़ाने वाला, उन्हें सच्चा राह दिखाने वाला, उनके अंदर ज्ञान का प्रकाश भरने वाला, अज्ञानता को दूर करने वाला, कच्ची मिट्टी के समान बच्चों को सुडौल घड़ों के सामान बनाने वाला, दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बनने वाला, हमेशा सहायता करने वाला इत्यादि होता है।तीसरे शब्द की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए शिक्षकों को हमेशा कार्यशील रहना चाहिए चाहे घर हो या विद्यालय। घर में स्वयं के बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ छोटे-बड़े कार्यों में हाथ बँटाने से हमेशा घर में खुशियों का माहौल बना रहता है। विद्यालय में भी हमेशा बच्चों के ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए। छोटी-बड़ी गतिविधियाँ कराते रहना चाहिए और स्वयं करते रहना चाहिए। किसी सहयोगी की विद्वता से ईर्ष्या न रखकर उनसे घुल-मिलकर उनके अंदर के अद्वितीय ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए और स्वयं का ज्ञान दूसरों में बाँटना चाहिए तभी उपरोक्त शब्द की सार्थकता सिद्ध होगी और तभी एक शिक्षक सच्चे "शिक्षक" कहलाएंगे।
No comments:
Post a Comment